आभा तीन चार दिन से बहुत परेशान थी। उसके पापा को बहुत तेज़ बुखार आ रहा था। कोई दवाई भी असर नहीं कर रही थी। उसे पता था कि उसके भाई भाभी पापा का पूरा ध्यान रख रहे है। पर फिर भी उसे अपने पापा पास जाना था। एक तो समय ऐसा था, हर तरफ कोरोना फेला हुआ था। उसका छोटा बच्चा होने की वजह से उसे यात्रा करना भी ठीक नहीं लग रहा था।
पर फिर भी उसका मन नहीं लग रहा था। चाहे वह पास जा कर उनको ठीक नहीं कर सकती थी, पर एक तसल्ली हो जाती कि पापा आंखों के सामने है। इसी कशमकश में दिन निकल रहे थे। बस मौका ढूंढ़ रही थी वो।
और आज इतनी मजबूरी है कि वह उनके पास तक नहीं जा सकती। वो इस अपराध बोध से ग्रस्त हो रही थी। काश वो भी एक लड़का होती तो अपने भाई की तरह इस मौके पर अपने पापा के साथ होती।
पर अभी तो वह बस दूर रहते हुए ,दुआ ही कर सकती है कि उसके पापा जल्दी से ठीक हो और फोन पर उनकी पहले की तरह रोबदार आवाज़ सुनाई दे।
इस सारे हालात में उसे यह भी आभास हुआ कि उसका छोटा सा भाई अचानक कितना बड़ा हो गया है। उसे तो यह लगता था कि अभी दोनों छोटे बच्चे (भाई भाभी) ही तो है, बेचारे अकेले कैसे सब संभालेंगे। पर उन्होंने सब कुछ इतना अच्छे से निभाया कि वह आश्चर्य चकित होने के साथ साथ बहुत खुश भी थी।
बस अब भगवान से यही प्रार्थना है कि वो सब कुछ जल्दी से ठीक कर दे। अगर आप यह पढ़ रहे है तो आप से भी विनती है कि सब ठीक होने की दुआ जरूर कीजिएगा।
बैठे बैठे सोच रही थी, कैसे जब कभी वह बीमार होती थी या कोई चोट लगती थी तो उसके मम्मा-पापा परेशान हो जाते थे। शहर का कोई डॉक्टर नहीं छोड़ते थे। रात रात भर जागते रहते थे। जब तक वह पूरी तरह ठीक नहीं हो जाती थी तब तक चैन से नहीं बैठते थे।
Its not only a story its a true emotions of a daughter💓,….
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