उसने दरवाजे से बाहर देखा, और उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसका वीरा आया था । सावन का महीना शुरू हो चुका था। तीज़ का त्योहार आ रहा था। उसकी शादी को केवल दो महीने ही हुए थे। शादी के बाद पहले तीज़ उत्सव का अपना ही चाव होता है। वह तुरंत अपनी सासू मां को बताने के लिए अंदर गई। उसने पहले से ही अपनी तैयारी कर रखी थी। अपनी सासू जी व ससुर जी के आशीर्वाद के साथ, वीरा को चाय और पानी देने के बाद, वह ख़ुशी-ख़ुशी अपने मायके चली गई।
उसकी सहेलियां भी वहां थी। बस फिर क्या था तीज़ के दिन सभी ने सुंदर कपड़े पहने, पैरों में पाजेबे डाली, सोलह सिंगार किया, सांझी जगह पर इकट्ठी हो गई।
सभी शादीशुदा सहेलियां अपने ससुराल और अपने पति के बारे में बात करने लगे। कुछ को सास मां जैसी मिली थी और किसी के ससुर पापा जैसे थे। फिर बात पति पर आयी। कुछ बोली कि मेरे पति को यह पसंद है और कुछ बोली उन्हें वो पसंद है। लेकिन जब पति की बात आई तो वह चुप कर गई ? सभी सहेलियां उससे पूछने लगी कि क्या हुआ? सब ठीक है, ना? उसने कहा, “मेरी सास बहुत अच्छी हैं। मेरा देवर भी मुझे अपनी माँ की तरह मानता हैं। लेकिन मैं उस घर में जिसके कारण से गई हूं उसके बारे में कुछ भी नहीं जानती।” सभी सहेलियां आश्चर्यचकित थी। वे सभी एक साथ बोली, “ओह कैसे? तुम एक दूसरे से बात नहीं करते? वह तुम्हारे साथ नहीं रहता?” कई सवाल उसे घेरने लगे। फिर उसने कहा, “मेरे पति सेना में है। हमारी शादी के अगले दिन, उन्हें ड्यूटी पर बुलाया गया था और उन्हें जाना पड़ा। तब से हमारी बात बस चिठियों से ही हुई है। और मुझे बस यही पता है कि उन्हें उनकी माँ के हाथों के आलू के परांठे बहुत पसंद है फिल्में देखना बहुत पसंद है।” मुझे पता है कि तीज़ कहीं न कहीं पति की सुरक्षा के लिए मनाई जाती है। यह हार शिंगर उनके लिए ही तो है। मैने तो आज का उपवास भी रखा है। मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि जैसे मेरे पति दिन-रात अपने देश की रक्षा कर रहे हैं, वैसे ही भगवान उनकी रक्षा करें। और मैं अपना कर्तव्य पूरा करते हुए, उनके माता-पिता का ध्यान रखूं। ” यह कहते ही उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसकी सहेलियां उससे चिपक गई।