“पापा, एक दिन मैं भी यह उड़ाऊँगी।” आसमान की ओर इशारा करते हुए आठ साल की मोनिका ने बोला। उसके पापा ने उसके हाथ का इशारा देखते हुए ऊपर देखा, एक हवाई जहाज अपने पीछे बदलो की रेखा खींचे जा रहा था। उसके पापा मुस्कुराए और बोले ” ठीक है ।” बस उस दिन से ही उसके सपनों की उड़ान शुरू हो गई थी।
मोनिका एक छोटे से कस्बे में रहने वाली लड़की थी। एक मिडिल क्लास परिवार से थी। उसने तो कभी अपने शहर से बाहर अकेले पांव नहीं रखा था । ना जाने इतना बड़ा सपना कैसे बुन लिया। सच ही कहते है सब दिमाग की बात होती है । सोच लो तो कुछ भी संभव है ।
पर जैसे जैसे वो बड़ी होती गई उसका सपना धुंधला होता गया। या फिर उसने सपना तो देख लिया था पर कभी उम्मीद नई की थी कि पूरा होगा । पर शायद उसके पापा के दिमाग़ में घर कर गया था ।
परिस्थिति एसी बनी की मोनिका को बिना मन के इनजिनियरिंग में दाखिला लेना पड़ा। फिर एक दिन उसके पापा ने बोला तुम्हें उड़ना था ना, तैयार हो जाओ। उसके पापा के लिए वो पल कभी बदला ही नहीं।वह अब 22 साल की थी पर उसके पापा के दिमाग़ में वो अभी भी आठ साल की थी जिसकी इचछा पूरी करनी बाक़ी थी ।उसके पापा ने अपने दिमाग में उसका सपना हमेशा जीवीत रखा।
बस फिर क्या था, उसके मानो पंख लग गए हो। अपने जीवन में वह पहली बार अकेले कहीं जा रही थी और वह भी अपने देश से बाहर। कुछ घबराई कुछ उत्साहित वह अपने सपने को पूरा करने अकेले चल पड़ी। उस के बाद उसने कभी पीछे पलट के नहीं देखा। एक छोटे से कस्बे की मिडिल क्लास परिवार की लड़की ने अपने माता पिता के आशीर्वाद से बाहर साल की उम्र में देखा सपना बाईस साल की उम्र में पूरा कर लिया।